Tuesday, June 29, 2010

निजी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने वाला एक शरारती खिलौना : सेल फोन


आज के युग में एक ऐसा उपकरण, जो विज्ञान की प्रगति का भी सूचक है तथा कार्य सिद्ध करने वाला भी, मनुष्य मात्र के लिए अब एक मुसीबत भी बनता जा रहा है। इस उपकरण का नाम है मोबाइल या सेल फोन। इसके बिना अधिकांश लोगों की दिनचर्या आरंभ नहीं होती। दिन भर लोग इसे छाती से लगाए फिरते हैं और यह है भी ऐसा कि आमजन की आवश्यकता की वस्तु बहुत जल्दी बन बैठा है। आज से ज्यादा नहीं, पंद्रह या बीस वर्ष पूर्व की कल्पना करें, उन दिनों यह फोन आसानी से उपलब्ध नहीं था। जिंदगी चैन से बीतती थी-अपनी भी एवं उनकी भी, जिन्हें हम आज चैन से जीने नहीं देते
भ्रांत-अशांत आज का व्यक्ति : तरह-तरह के सेल फोन हैं आज। किसी में फोटो लेने वाला कैमरा है तो किसी में हजारों गाने भरे पडे हैं। रिंगटोन, कालर टोन भी हजारों प्रकार की हैं, शांत दुनिया में शोर पैदा कर देने वाली। जिसे देखें, उसकी जेब में मोबाइल बजता रहता है। जिसका नहीं बजता, उसे यह माना जाता है कि यह सामाजिक प्राणी नहीं है, इसे कोई जानता नहीं। पुराने जमाने में, जब टं्रक लाइन पर लंबी दूरी का फोन करते थे तो जिस तरह जोर-जोर से बात करते थे, उसी तरह आज का आदमी औरों को सुनाने के लिए अपने मोबाइल से जोर से बात करता है। हाँ, इसकी उपयोगिता को कोई नकार नहीं सकता। इसने दूरियाँ कम की हैं एवं संपर्क अब और आसान हो गया है, पर उसकी कीमत क्या है? किसी ने कभी सोचा है क्या अंधाधुंध बढ़ती तकनीकी ने आज हमें जहाँ लाकर खड़ा कर दिया है, वहाँ हम अपने आप को ठगा-सा अनुभव करते हैं। लगता है, आज आदमी सन् सत्तर के दशक के व्यक्ति से ज्यादा कन्फ्यूज्ड है-भ्रांतियों में जी रहा है एवं अशांत है।
फोनधारकों की बढती संख्या : सेल फोन की अच्छाई व बुराई बताने के साथ थोडे अाँकडे भी बताने जरूरी हैं। आप सभी अवगत होंगे कि सेल फोन के क्षेत्र में भारत सबसे बडे उपभोक्ता के रूप में उभर कर आया है। मंदी के इस दौर में अगणित विदेशी कंपनियाँ, जिनमें नोकिया, सोनी-एरिकसन, मोटोरोला, एपल आदि हैं, भारत में कूद पड़ी हैं। उनके उत्पाद बिक रहे हैं, अत: उनकी कंपनियाँ भी चल रही हैं। वे सस्ती कीमत पर इसलिए दे पा रहे हैं कि माँग लाखों की संख्या में है। हर व्यक्ति सेल फोन रखना चाहता है। एक अंदाज है कि उपभोक्ताओं की संख्या इसी तरह बढ़ती रही तो 2010 तक 45 करोड़ भारतीयों के हाथ में मोबाइल होगा।
हमारे देश में जनवरी, 2009 तक मोबाइल रखने वालों की संख्या 36 कराेड, 67 लाख हो गई है। दो वर्षों के भीतर (2010 के अंत तक) देश के हर तीसरे आदमी के हाथ में मोबाइल होगा। पूरे देश में करीब 3 लाख मोबाइल टावर स्थापित हैं।
आपको नहीं लगता किना निजी स्वतंत्रता में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप करने वाला एक शरारती खिलौना हम सबके बीच आ गया है?

दुष्प्रभाव जानें एवं चक्रव्यूह से निकलें : सेल फोन के दुष्प्रभावों पर बड़ा शोध हुआ है। इसे मस्तिष्क का (विशेष रूप से टेंपोरल लोब) कैंसर, डिप्रेशन, एन्कजायटी, हृदयगति बढ़ना, रक्तचाप बढ़ना जैसे प्रभावों से संबंधित माना गया है, पर एक षडयंत्र के तहत इन शोधों को आम आदमी तक पहुँचने से मुनाफा कमाने वाली इन कंपनियों ने रोक दिया है। मोबाइल पर बात कर ड्राइविंग करने वालों के एक्सिडेंटों के किस्से सबको मालूम हैं। टॉवर से आने वाली तरंगों से पास रहने वाले व सेल फोन रखने वालों पर दुष्प्रभावों पर भी वैज्ञानिकों ने लिखा है। शांत जीवन जीने की इच्छा रखने वालों, निरोग रहने वालों को अब इससे निजात पानी ही होगी। इसके सीमित उपयोग के विषय में ही सोचना होगा। दुनिया जरूर इससे करीब हो गई है, पर दिलों की दूरियाँ बढ़ गई हैं। उन्हें पाटना होगा। घंटों बात करने वालों को इसके दुष्प्रभाव बताने होंगे। युवा पीढ़ी को इसके पढाई पर पड़ने वाले प्रभाव समझाने होंगे। तभी आज क अभिमन्यु इसके चक्रव्यूह से निकल सकेंगे।

3 comments:

  1. सच मे इतनी बुराइयो के बावजूद मोबाइल आज इंसान का अभिन्न अंग बन चुका है...जहा इससे एक तरफ अपराध मे इज़ाफा हुआ है वही इससे काफ़ी अक्च्छा परिवर्तन भी आया है इंसान के जीवन मे ...!!

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  2. आपने शब्दों को लेख में अच्छे से बाँधा है. सच है आई.टी. के विकास से दुश्चिंताएं बढ़ी हैं, और इसके दुरूपयोग पर किसी न किसी रूप में अंकुश आवश्यक है. पर इसने हमें लाभान्वित भी बहुत किया है. तमाम दूरियां सिमट कर हमारी मुट्ठी में आ गई हैं.

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  3. Aapka andaaza bilkul sahi hai amit ji. Aaj पूरे देश में करीब 3 लाख मोबाइल टावर स्थापित हैं। jinme bharat desh ka 26% diesel consume ho raha hai. Aur Oil companies diesel/petrol ka rate lagatar bhada rahi hai. Transport ka kharcha badhne se hi mehangai badh rahi hai.

    DESH ko garib karne mein bhi MOBILE ka bahut bada yogdaan hai.

    -Vikas
    Jai Hind

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